आधुनिक युद्ध पूरी तरह प्रौद्योगिकी आधारित, भारत ने पिछले चार दिन में दिखाई वैश्विक श्रेष्ठता
नई दिल्ली: “आधुनिक युद्ध अब गोलियों और बंदूकों से नहीं, तकनीक से लड़े जाते हैं—और भारत ने इसमें अपनी सर्वोच्चता सिद्ध कर दी है।” यह कहना है केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह का, जिन्होंने अंबेडकर अंतरराष्ट्रीय केंद्र में आयोजित राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस समारोह के दौरान अपने संबोधन में यह बात कही।
डॉ. सिंह ने हाल ही में हुए ऑपरेशन सिंदूर में भारत की तकनीकी श्रेष्ठता को रेखांकित करते हुए कहा कि यह सफलता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले एक दशक में स्वदेशी तकनीक को प्राथमिकता देने के विजन का प्रतिफल है। उन्होंने कहा कि “पिछले चार दिनों की घटनाओं ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत अब तकनीकी दृष्टि से विश्व मंच पर अग्रणी राष्ट्रों की श्रेणी में शामिल हो चुका है।”
स्वदेशी तकनीक बनी राष्ट्रीय सुरक्षा की रीढ़
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि आज देश की रक्षा में प्रयुक्त अधिकांश तकनीकें स्वदेशी रूप से विकसित हैं और यह प्रधानमंत्री मोदी की दूरदर्शिता का ही परिणाम है कि भारत अब विदेशी तकनीक पर निर्भर नहीं रहा। उन्होंने बताया कि आधुनिक युद्ध में मिली सफलता 2047 तक ‘विकसित भारत’ की ओर तेज़ी से बढ़ते कदमों का प्रतीक है।
उन्होंने 1998 के पोखरण परमाणु परीक्षण की स्मृति में मनाए जाने वाले इस दिवस की ऐतिहासिकता का उल्लेख करते हुए कहा, “1998 में जो सपना देखा गया था, वह आज प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में तकनीकी यथार्थ में बदल रहा है।”
ड्रोन से लेकर क्वांटम तक, भारत बना तकनीकी नवाचार का अगुवा
कार्यक्रम के दौरान डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि बीटिंग रिट्रीट जैसे समारोहों में 1000 ड्रोन शो अब भारत की तकनीकी क्षमता का परिचायक हैं, जो कभी सिर्फ प्रतीकात्मक हुआ करते थे। उन्होंने इस साल की थीम “यंत्र” की विशेष सराहना करते हुए कहा कि यह नवाचार, उन्नत अनुसंधान और तकनीकी तीव्रता का प्रतीक है।
उन्होंने वैश्विक नवाचार सूचकांक में भारत की छलांग (81वें स्थान से 39वें) और घरेलू पेटेंट फाइलिंग में वृद्धि (अब 56% पेटेंट भारतीयों द्वारा) को देश में बढ़ते नवाचार की मिसाल बताया। स्टार्टअप इकोसिस्टम में भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश बन चुका है।
रक्षा निर्यात 2,000 करोड़ से 16,000 करोड़ पहुंचा, आत्मनिर्भर भारत का प्रमाण
रक्षा क्षेत्र में भारत ने निर्यात के मोर्चे पर भी बड़ा मुकाम हासिल किया है। डॉ. सिंह ने बताया कि जहां पहले रक्षा निर्यात 2,000 करोड़ रुपये था, वहीं अब यह बढ़कर 16,000 करोड़ रुपये हो गया है। अनुसंधान एवं विकास पर खर्च 60,000 करोड़ से 1.27 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है, जिसमें DST और DBT का बजट भी दोगुना हुआ है।
अंतरिक्ष बजट में तीन गुना वृद्धि और निजी भागीदारी के लिए क्षेत्र को खोलने से भारत अब भविष्य की तकनीक में वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहा है।
अब हमारे पास नवाचार को पोषित करने वाला नेतृत्व है
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत में हमेशा प्रतिभा की कमी नहीं थी, कमी थी उसे बढ़ावा देने वाले नेतृत्व की। “आज हमारे पास प्रधानमंत्री मोदी जैसा नेतृत्व है जो नवाचार को प्रोत्साहित करता है और वैज्ञानिक सोच को केंद्र में रखता है,” उन्होंने कहा।
राष्ट्रीय क्वांटम मिशन में बढ़ती रुचि, स्टार्टअप्स को मिला बढ़ावा
इस अवसर पर डॉ. सिंह ने TDB द्वारा वित्तपोषित “सुपर 30 स्टार्टअप्स” का संग्रह भी जारी किया और राष्ट्रीय क्वांटम मिशन के तहत दो नए प्रस्ताव आमंत्रित किए। उन्होंने कार्बन कैप्चर तकनीक पर कार्य कर रहे संस्थानों को परियोजना अनुदान भी सौंपे।
कार्यक्रम में पद्म भूषण अजय चौधरी, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सचिव डॉ. अभय करंदीकर, जैव प्रौद्योगिकी सचिव डॉ. राजेश गोखले, DST के सचिव डॉ. राजेश पाठक और कई वैज्ञानिक व वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित रहे।
समापन संदेश: कार्यक्रम के अंत में डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा, “27वां राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस भारत की वैश्विक वैज्ञानिक प्रतिष्ठा का प्रमाण है और यह दिन भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण पड़ाव है।”