राष्ट्रपति भवन में साहित्य का मंथन: “कितना बदल चुका है साहित्य?” सम्मेलन का भव्य उद्घाटन
द्रौपदी मुर्मु बोलीं – आज का साहित्य प्रवचन नहीं, सहयात्रा है
पीआईबी दिल्ली
नई दिल्ली। राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने गुरुवार को राष्ट्रपति भवन सांस्कृतिक केंद्र में आयोजित दो दिवसीय साहित्य सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस सम्मेलन का शीर्षक है – “कितना बदल चुका है साहित्य?”, जो वर्तमान साहित्यिक बदलावों, चुनौतियों और संभावनाओं पर केंद्रित है। राष्ट्रपति ने उद्घाटन सत्र में अपने गहन विचार साझा करते हुए कहा कि आज का साहित्य नैतिक प्रवचन नहीं, बल्कि सहयात्रा बन चुका है, जिसमें लेखक साथ चलता है, महसूस करता है और पाठक को महसूस कराता है।
सम्मेलन का उद्देश्य: साहित्यिक बदलावों पर विचार-विमर्श
यह सम्मेलन संस्कृति मंत्रालय और साहित्य अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया है। इसमें देश के विभिन्न भाषाओं और बोलियों के साहित्यकार, आलोचक, अध्येता और युवा लेखक भाग ले रहे हैं। राष्ट्रपति ने साहित्य के बदलते स्वरूप पर गंभीर विमर्श की आवश्यकता को रेखांकित किया और कहा कि “बदलते समाज में जब प्राथमिकताएं और चुनौतियां बदलती हैं, तो साहित्य की दिशा भी परिवर्तित होती है।”
“साहित्यकारों से सजी राष्ट्रपति भवन की कल्पना”
राष्ट्रपति मुर्मु ने भावुक लहजे में कहा कि छात्र जीवन से ही उनका साहित्य से गहरा जुड़ाव रहा है। उन्होंने इच्छा व्यक्त की कि “राष्ट्रपति भवन में अनेक साहित्यकारों का आगमन हो और यह भवन साहित्यिक विमर्श का केंद्र बने।” उन्होंने सम्मेलन के आयोजन के लिए संस्कृति मंत्रालय और साहित्य अकादमी की सराहना की।
साहित्य की आत्मा में बसी है भारतीयता
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत की भाषाई और साहित्यिक विविधता में एक गहन भारतीयता की भावना समाहित है, जो हमारे देश के सामूहिक अवचेतन का हिस्सा है। उन्होंने कहा, “मैं देश की सभी भाषाओं और बोलियों को अपनी भाषा मानती हूं, और उनके साहित्य को अपना साहित्य मानती हूं।” उनका यह वक्तव्य भारतीय बहुभाषी संस्कृति के प्रति राष्ट्रपति के संवेदनशील दृष्टिकोण को दर्शाता है।
“कालजयी साहित्य वही जो मूल्यों को थामे”
राष्ट्रपति ने कहा कि साहित्य की पहचान स्थायी मानवीय मूल्यों की स्थापना से होती है। उन्होंने बताया कि जैसे-जैसे समाज बदला है, साहित्य में भी बदलाव आए हैं। लेकिन स्नेह, करुणा और संवेदना जैसे मूल भाव हमेशा शाश्वत रहेंगे। उन्होंने कहा कि आज का लेखक एक उपदेशक नहीं बल्कि एक सहभागी है – जो पाठकों को अपने अनुभवों से जोड़ता है।
सम्मेलन में आज और कल होंगे प्रमुख सत्र
इस साहित्यिक समागम में कई अहम विषयों पर चर्चा होगी, जिनमें प्रमुख हैं:
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‘भारत का नारीवादी साहित्य: नई राहें’ – जहां स्त्री लेखन की नई चुनौतियों और दृष्टियों पर चर्चा होगी।
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‘साहित्य में परिवर्तन बनाम परिवर्तन का साहित्य’ – जिसमें यह विमर्श होगा कि क्या साहित्य बदलाव को दिखाता है या खुद बदलाव लाता है।
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‘वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारतीय साहित्य की नई दिशाएं’ – जहां यह समझने की कोशिश होगी कि आज का भारतीय साहित्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कैसे प्रतिस्पर्धा कर रहा है।
सम्मेलन का समापन लोकमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती की साहित्यिक गाथा के साथ होगा, जो भारतीय नारी शक्ति और जनसेवा की प्रेरणास्रोत रही हैं।
आज के साहित्य की नई परिभाषा: राष्ट्रपति की दृष्टि
राष्ट्रपति ने अपने भाषण के अंत में साहित्य को लेकर एक आधुनिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा:
“आज का साहित्य न तो नैतिकता की किताब है, न ही शास्त्र का उपदेश। यह लेखक और पाठक की साझी यात्रा है, जहां अनुभवों का साझा विस्तार होता है।”
उन्होंने विश्वास जताया कि इस सम्मेलन से नई पीढ़ी के लेखकों को दिशा मिलेगी और भारतीय साहित्य का भविष्य और उज्ज्वल होगा।